हमने अक्सर सुना है कि 90% लोग स्टॉक मार्केट में नुकसान करते है। जिससे Risk Management in stock market को जानना और समझना और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है। स्टॉक मार्केट(Stock Market) में कैपिटल (पूंजी) के नुकसान का रिस्क होता है। अगर हमें लंबे समय तक स्टॉक मार्केट में टिके रहना है तो अपने कैपिटल को बचाना सबसे पहला काम होना चाहिए।
आज हम स्टॉक मार्केट के एक बहुत ही जरूरी टॉपिक “Risk Management” के बारे में सीखने और समझने वाले हैं। जिससे हम 90% लोगो में न होकर उन 10% लोगो में शामिल हो जाए जो स्टॉक मार्केट में प्रॉफ़िट कमाते है।
रिस्क मैनेजमेंट क्या है? What is Risk Management in Stock Market?

अब हम सब जानते है कि स्टॉक मार्केट में रिस्क काफी ज्यादा रहता है। तो रिस्क मैनेजमेंट(Risk Management) का सीधा और सरल मतलब है ” किसी भी इनवेस्टमेंट या ट्रेडिंग में होने वाले रिस्क को पहचानना और उसको कम करने का उपाय करना। यही रिस्क मैनेजमेंट है।”
स्टॉक मार्केट में रिस्क मैनेजमेंट(Risk Management) को समझे बिना पैसा लगाना ठीक वैसा ही है जैसे बिना पैराशूट के प्लेन से छलांग लगा देना। इसलिए, रिस्क मैनेजमेंट हमें यह सिखाता है कि कैसे अपने रिस्क को कम करे ताकि हम अपने कैपिटल को बचा सके। जिससे हम स्टॉक मार्केट में लंबे टाइम तक बने रह सकते है और प्रॉफ़िट भी कमा सकते।
Example से समझते है कि मान लीजिए हमारे पास ₹1,00,000 रुपए है। अगर हम बिना प्लान के सारे पैसे एक ही शेयर या एक ही ट्रेड में लगा देते है, और शेयर में का प्राइस गिरने लगता है। अब हमने बिना रिस्क को समझे इन्वेस्ट किया है तो उस शेयर के प्राइस गिरने पर भारी नुकसान होना तय है।
अब अगर हमने स्टॉप लॉस और पोजीशन साइजिंग पहले से तय कर लेते है। जैसे हम 100000 रुपए को 2-3 स्टॉक में इन्वेस्ट करते है और एक स्टॉक पर 2% या 5% या 10% ही लॉस लेना है। ऐसा करने से हमारा रिस्क फिक्स हो गया और हम बड़े लॉस से आसानी से बच सकते है। यही रिस्क मैनेजमेंट (Risk Management) है।
स्टॉक मार्केट में रिस्क मैनेजमेंट कैसे करें? How to do Risk Management in Stock Market?
ये तो हम समझ गए कि रिस्क मैनेजमेंट(Risk Management) क्या है अब समझते है कि हम अपने रिस्क को कैसे पूरी तरह से मैनेज कर कम कर सकते है।
स्टॉप-लॉस का इस्तेमाल (Stop-Loss)
रिस्क मैनेजमेंट(Risk Management) में स्टॉप लॉस (Stop loss) ही सबसे जरूरी है, Stop Loss का सीधा मतलब है की हम इस प्राइस पॉइंट पर अपना लॉस बुक करके ट्रेड से या स्टॉक से बाहर हो जाएगे। इससे हम अपना लॉस फिक्स कर लेते है। मान लीजिए हमने Reliance का शेयर ₹2,500 में खरीदा। अगर हम 10% का स्टॉप-लॉस लगाते हैं, तो जैसे ही स्टॉक का प्राइस ₹2,250 से नीचे आए हमे अपना लॉस बुक कर लेना है।
Short Term Trading जैसे Scapling , Intraday Trading या Swing Trading में तो स्टॉप लॉस का इस्तेमाल हमेशा करना ही चाहिए। बिना स्टॉप लॉस के ट्रेडिंग(Trading) करने में बहुत ही ज्यादा रिस्क हो सकता। जिससे आपका पूरा कैपिटल कुछ ही टाइम में पूरी तरह खत्म भी हो सकता है।
पोजीशन साइजिंग (Position Sizing:)
अब जब खासकर शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग की बात करे तो हर ट्रेड में केवल उतना ही कैपिटल लगाना चाहिए जितना हम खोने के लिए तैयार हैं। हाँ हम स्टॉप लॉस का इस्तेमाल जरूर करेगे पर सारा कैपिटल एक ही ट्रेड में इस्तेमाल नहीं करेगे। जैसे, अगर हमारा कुल कैपिटल ₹5 लाख है, तो इसे अलग-अलग शेयर या ट्रेड में लगाना चाहिए न की एक ही स्टॉक या एक ही ट्रेड में।
पोजीशन साइजिंग का सरल मतलब यही है की अपने कैपिटल को एक ही ट्रेड में न लगाकर बल्कि जितना रिस्क ले सकते है जितना स्टॉप लॉस हो उस हिसाब से पोजीशन साइजिंग को कम ज्यादा कर मैनेज करना है।
रिस्क-रिवार्ड रेशियो (Risk-Reward Ratio)
हम कोई भी Strategy बना लें वो 100% प्रॉफ़िट दे, ऐसा नहीं होता है। इसलिए हम अपनी Strategy हमेशा रिस्क-रिवार्ड रेशियो को ध्यान में रखकर ही ट्रेड में एंट्री लेते है। रिस्क-रिवार्ड रेशियो का सीधा मतलब है की हम ऐसे ट्रेड चुनें जहां प्रॉफिट की संभावना रिस्क से कम से कम दोगुनी हो।
जैसे, अगर हम किसी ट्रेड में या स्टॉक में ₹10 का रिस्क ले रहे हैं, तो टारगेट ₹20 या उससे ज्यादा होना चाहिए। जिससे अगर लॉस लिमिटेड हो और जब प्रॉफ़िट होगा तो दोगुना होगा।
अब मान लेते है की हमने कुल 10 ट्रेड लिए है जिसमे से 5 ट्रेड में प्रॉफ़िट होता है तो वहीं 5 ट्रेड में लॉस। इस स्थिति में ही रिस्क-रिवार्ड रेशियो का फायदा समझ आता है, अब 5 ट्रेड में हमारा लॉस ₹10 प्रति ट्रेड के हिसाब ₹50 हुआ है तो वहीं 5 ट्रेड में प्रॉफ़िट हुआ है।
जहां हमने रिवार्ड दोगुना रखा था जिससे ₹20 प्रति ट्रेड के हिसाब से हमें ₹100 का प्रॉफ़िट होगा। अब 5 ट्रेड लॉस में जाने के बाद भी कुल प्रॉफ़िट देखे तो हमें अभी भी ₹50 का प्रॉफ़िट हुआ है। यह रिस्क रिवार्ड रैशियो से ही संभव हो सकता है।
पोर्टफोलियो डायवर्सिफिकेशन ( Portfolio Diversification)
ये उनके लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है जो लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट करते है। लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट मैं भी हमे रिस्क मैनेजमेंट करना होता है, हमे इस बात का ध्यान देना है कि पोर्टफोलियो सिर्फ एक ही सेक्टर या कंपनी तक नहीं रखना है।
इसका सीधा मतलब यह है कि हमें अपने पोर्टफोलियो में अलग-अलग सैक्टर कि कंपनी में इन्वेस्ट कर रिस्क को मैनेज करना है। जिससे ये होगा की अगर IT सेक्टर में मंदी आती है, तो हमें FMCG या Healthcare का इनवेस्टमेंट हमें बड़े नुकसान के रिस्क से बचा लेगा।
इन्वेस्टिंग में ये भी जरूरी है की हम सिर्फ स्टॉक मार्केट के अलावा भी जैसे Gold , Mutual Fund , Bond इन सभी में भी Invest कर अपने पोर्टफोलियो को Diversify कर सकते है। जिससे हमारा रिस्क मैनेजमेंट(Risk Management) और बेहतर हो जाता है।
हेजिंग रणनीतियां (Hedging )
हम जानते है कि स्टॉक मार्केट बहुत ज्यादा वोलेटाइल होता है जिससे ओवरनाइट रिस्क और भी बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में हम हेजिंग रणनीतियाँ बनाकर अपने रिस्क को कम कर सकते है। एक पोजीशनल ट्रेडर और इन्वेस्टर के लिए ओवरनाइट होल्ड करना ज्यादा रिस्क हो जाता , कोई भी न्यूज़ , कोई भी इवैंट से स्टॉक का प्राइस बहुत ज्यादा इफैक्ट हो सकता है।
माना लीजिये हमने किसी स्टॉक को खरीदर कर लॉन्ग कि पोसिशन बनाई है , हमारा अनुमान था कि स्टॉक प्राइस यहाँ से बढ़ना चाहिए, लेकिन अलगे दिन तक स्टॉक के लिए कोई बुरी न्यूज़ आ जाती है , जिसकी वजह से स्टॉक में भारी गिरावट होना तय है। इसलिए हमें न्यूज़ और सही अपडेट के बारे में भी जानकारी होना भी जरूरी है, जिसके लिए हम NSE या Moneycontrol जैसी वैबसाइट का उपयोग करना चाहिए।
हम चाहे स्टॉप लॉस भी लगाए होंगे फिर भी प्राइस न्यूज़ कि वजह से बहुत ज्यादा गिर सकता है। जिससे हमे बहुत बड़ा नुकसान उठाना पढ़ सकता है , इसलिए हेजिंग कर के हम इस ओवरनाइट रिस्क को मैनेज कर कम कर सकते है।
किसी भी पोजीशन को हेज करने के लिए हम काफी तरीके कि रणनीतियां अपनाते है जैसे अगर हमने किसी स्टॉक में ख़रीदारी कि पोजीशन बनाई है तो हम हेज करने के लिए उसी स्टॉक के फ्यूचर और ऑप्शन के कांट्रैक्ट को खरीद सकते है , जिससे अगर कोई बढ़ी गिरावट होती है तो हमे बड़ा लॉस नहीं होगा।
इस तरह से हेजिंग करके भी हम Risk Management कर सकते है। जिससे ओवरनाइट रिस्क से बचा जा सकता है।
लालच पर कंट्रोल (Control on Greed)
हम सभी स्टॉक मार्केट में Profit कमाना चाहते है लेकिग कई बार हम “और Profit” कमाने के चक्कर में स्टॉप-लॉस हटा देते हैं या फिर टारगेट बढ़ा देते हैं। ये ज्यादा लालच ही हमें कभी-कभी बड़ा नुकसान करवा देती है। खासकर की Scalping और Intraday Trading में ये करना बहुत ही ज्यादा लॉस का रिस्क बड़ा देती है। इसलिए Greed से बचना चाहिए और अपने Risk-Reward Ratio के हिसाब से प्लान पर बने रहना चाहिए।
Also Read: Technical Analysis क्या है। ट्रेडिंग में इसका उपयोग कैसे करें?
रिस्क मैनेजमेंट के फायदे (Benefits of Risk Management in stock market)
जब हम रिस्क मैनेजमेंट(Risk Management) कर लेते है तो हमे उसके फायदे क्या क्या होते है। ये भी समझ लेते है –
पूंजी की सुरक्षा (Capital Protection)
स्टॉक मार्केट में हम मेहनत कर के कुछ Capital लाते है जिससे हम उम्मीद करते है की कुछ प्रॉफ़िट बनाया जा सके। रिस्क मैनेजमेंट(Risk Management) का सबसे बड़ा फायदा यही है कि यह हमारे कैपिटल, को बचाने की कोशिश करता है। कैपिटल ही है जो हमे लंबे समय तक मार्केट में बने रहने के लिए चाहिए होता है। इसलिए इसे बचाए रखना बेहद जरूरी है।
जैसे, अगर हम हर ट्रेड में केवल 2% रिस्क लेते हैं, तो लगातार 5 गलत ट्रेड के बाद भी हमारा केवल 10% कैपिटल ही कम होगा जिसे हम आसानी से मैनेज कर सकते।
भावनाओं पर कंट्रोल (Emotional Control)
जब हम कोई भी ट्रेड लेते है तो हमारा पैसा रिस्क पर लगा होता है, जिससे डर और लालच होना आम बात है। लेकिन Risk Management की मदद से हम पहले से प्लान बना लेते हैं, की कितना लॉस लेना है या कितना प्रॉफ़िट लेना है।
अगर हम सही से रिस्क-रिवार्ड रैशियो को फॉलो करते है तो इससे हम अपने भावनाओं और लालच पर कंट्रोल कर सकते है जिससे मार्केट के उतार चड़ाव में हम सही फैसले ले सकते हैं।
तनाव से मुक्ति (Reduced Stress)
रिस्क मैनेजमेंट(Risk Management) करके हम तनाव से भी बच सकते हैं । जब हम रिस्क मैनेजमेंट के सारे स्टेप फॉलो करके कोई भी ट्रेड लेते है तो हम जानते हैं कि हमारा लॉस और प्रॉफ़िट फिक्स है तो हम भावनात्मक रूप से तैयार होते है, जिससे स्टॉक मार्केट के ऊपर-नीचे होने से हम पर कोई ज्यादा फर्क नही पड़ता है जिससे तनाव कम रहता है।
लंबे समय तक सफलता (Long-Term Success)
स्टॉक मार्केट में वही कामयाब हो सकता है जो लंबे समय तक बना रह सके। रिस्क मैनेजमेंट(Risk Management) हमें “सर्वाइवल माइंडसेट” देता है। कहने का मतलब है की जो लंबे समय तक मार्केट में टिके रहते हैं, वे ही अंत में जीतते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion of Risk Management in stock market)
स्टॉक मार्केट एक बेहतरीन जगह है जो हमें आर्थिक तौर पर आगे बढ़ने के कई अवसर देता है, लेकिन यह तभी संभव है जब हम “रिस्क” को अच्छे से समझे और उसका अपनी ट्रेडिंग में इस्तेमाल करे। रिस्क मैनेजमेंट(Risk Management) कोई रॉकेट साइंस नहीं है—यह सिर्फ अनुशासन, प्लानिंग और धैर्य की मांगता है।
रिस्क मैनेजमेंट(Risk Management) से संबंधित कुछ सामान्य पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
1. रिस्क मैनेजमेंट (Risk Management)क्या है?
रिस्क मैनेजमेंट एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे हम बाजार के उतार-चढ़ाव और संभावित नुकसान के रिस्क को पहचानते हैं और अच्छी तरह से उनका एनालिसिस करके रिस्क को कम करने के लिए जरूरी और सही रणनीतियाँ बनाते हैं। जिससे निवेश पर नुकसान का रिस्क कम हो जाता है।
2. स्टॉक मार्केट में रिस्क मैनेजमेंट(Risk Management) क्यों महत्वपूर्ण है?
- अनिश्चितता से सुरक्षा: बाजार में उतार-चढ़ाव, आर्थिक और राजनीतिक घटनाओं के कारण जोखिम बना रहता है।
- मानसिक तनाव से बचाव : जब हम जानते हैं कि हमने निवेश को सुरक्षित करने के लिए सही रणनीति बनाकर इन्वेस्ट किए हैं, तो हम मानसिक रूप से शांत रहते हैं।
- दीर्घकालिक सफलता: सही रिस्क मैनेजमेंट से हम लंबे समय तक स्थिर और लाभदायक निवेश कर सकते हैं।
3. रिस्क मैनेजमेंट के मुख्य तत्व कौन से हैं?
- डायवर्सिफिकेशन (Diversification): निवेश को विभिन्न एसेट्स, सेक्टर्स या स्टॉक्स में बाँटना।
- स्टॉप लॉस ऑर्डर (Stop Loss Order): नुकसान को सीमित करने के लिए स्टॉप लॉस ऑर्डर का उपयोग।
- पोजीशन साइजिंग (Position Sizing): यह निर्धारित करना कि एक ट्रेड में कितना निवेश करना है।
- रिस्क/रिवार्ड अनुपात (Risk/Reward Ratio): अपने रिस्क और रिवार्ड यानि प्रॉफ़िट और लॉस को पहले से ही फिक्स कर लेना।
- भावनात्मक नियंत्रण: बाजार की अस्थिरता में भी बिना किसी भावनात्मक रूप से निर्णय लेना।
4. स्टॉप लॉस ऑर्डर क्या होता है ?
स्टॉप लॉस ऑर्डर एक ऐसा ऑर्डर है जो हम स्टॉक को एक निश्चित प्राइस पर बेचने के लिए सेट करते है। जब स्टॉक का प्राइस उस स्तर तक गिर जाता है, तो यह ऑर्डर खुद ही सक्रिय हो जाता है, जिससे हम अपना नुकसान सीमित कर लेते है और बड़े नुकसान से बच जाते है।
5. रिस्क मैनेजमेंट में आमतौर पर होने वाली गलतियाँ क्या हैं?
- ओवरकन्फिडेंस: छोटी सफलताओं के बाद अत्यधिक आत्मविश्वास से रिस्क बढ़ाना।
- भावनात्मक निर्णय लेना: बाजार की अस्थिरता में बिना योजना के ट्रेड करना। और भावनात्मक निर्णय लेना।
- अनुशासन की कमी: अपनी बनायी हुयी रणनीति के हिसाब से ट्रेड न लेना। जिससे जोखिम बढ़ जाता है।
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“Disclaimer: स्टॉक मार्केट में निवेश और ट्रेडिंग में जोखिम होता है, और इसमें पैसे का नुकसान भी हो सकता है। यह जानकारी सिर्फ सीखने उद्देश्य (Education Purpose Only) के लिए दी जा रही है, इसे निवेश की सलाह न समझें। कोई भी निर्णय लेने से पहले अच्छी तरह से रिसर्च करें या अपने वित्तीय सलाहकार से सलाह लें।”
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